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ख़ुद-फ़रामोश-ए-क़फ़स हम हैं चमन याद नहीं

साक़िब लखनवी

ख़ुद-फ़रामोश-ए-क़फ़स हम हैं चमन याद नहीं

साक़िब लखनवी

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    ख़ुद-फ़रामोश-ए-क़फ़स हम हैं चमन याद नहीं

    ग़ैर के हो गए ऐसे कि वतन याद नहीं

    चाँदनी हुस्न की अच्छी है मगर नाज़ कर

    तुझ को इस चाँद का तारीक गहन याद नहीं

    उस की महफ़िल में हुआ था कभी अपना भी गुज़र

    बातें कुछ की थीं मगर मुझ को दहन याद नहीं

    शिकवा-ए-हिज्र की ख़्वाहिश कर दिल कि तुझे

    सामना हो तो कोई रंज-ओ-मेहन याद नहीं

    जल्वा-ए-हिल्ला-ए-जन्नत से ये ख़ुद-रफ़्ता हुआ

    मैं ने किन हाथों से पहना था कफ़न याद नहीं

    क्यूँ सुनाते हो 'अबस अहल-ए-वफ़ा को बातें

    कि उन्हें तर्ज़-ए-मुकाफ़ात-ए-सुख़न याद नहीं

    तफ़र्रुक़ा-साज़-गरों की ये हद है कि मुझे

    मिल के बैठे थे कभी रूह-ओ-बदन याद नहीं

    हम तो मर मर के सिखाया किए लेकिन अब तक

    'इश्क़ का हुस्न-ए-ख़ुद-आरा को चलन याद नहीं

    तुर्रा-ए-गेसू-ए-जानाँ तिरी निकहत की क़सम

    मैं ने देखा था मगर मुश्क-ए-ख़ुतन याद नहीं

    क्या बताऊँ तुझे मैं क़ैद-ए-मोहब्बत क्या थी

    दस्त-ओ-पा को मिरे ज़ंजीर-ओ-रसन याद नहीं

    तेरे नज़्ज़ारे में दिल महव था ऐसा दम‌‌‌-ए-रंज

    तेग़ का फल मुझे सेब-ए-ज़क़न याद नहीं

    दाग़ गिनते हुए गुज़रे हैं क़फ़स में शब-ओ-रोज़

    किस तरह खुलते थे गुल-हा-ए-चमन याद नहीं

    क़द्र-दाँ पा के बहल जाते हैं आवारा-वतन

    जब तो निकले हुए मोती को अदन याद नहीं

    ज़ब्ह होने से मिरे उन को त'अज्जुब है तो हो

    अपने माथे की वो ख़ूँ-रेज़ शिकन याद नहीं

    कौन सुनता है ये अफ़्साना-ए-ग़म 'साक़िब'

    क़ाबिल-ए-अहल-ए-ज़माना कोई फ़न याद नहीं

    स्रोत:

    Deewan-e-Saqib (Pg. 225)

    • लेखक: Mirza Zakir Husain Qazlibaas Saqib Lucknowvi
      • संस्करण: 1998
      • प्रकाशक: Urdu Acadami U.P.
      • प्रकाशन वर्ष: 1998

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