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ग़ज़ल
हर इक मुफ़्लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
कोई चेहरा भी पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
ग़ज़ल
दास्तानें ही सुनानी हैं तो फिर इतना तो हो
सुनने वाला शौक़ से ये कह उठे फिर क्या हुआ
इक़बाल अशहर
ग़ज़ल
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
मस्लहत कुछ भी न कहने दे तो इस का क्या इलाज
जाने कितनी दास्तानें हैं लब-ए-ख़ामोश में
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
दास्तान-ए-ग़म से लाखों दास्तानें बन गई
फिर भी वो इक राज़-ए-सर-बस्ता रहा जो दिल में था
अली जवाद ज़ैदी
ग़ज़ल
तिरी आँखों में आवाज़ें मिरे होंटों पे सन्नाटा
सफ़र की दास्तानें क्या सुनाएँ एक जैसी हैं
ख़्वाज़ा रज़ी हैदर
ग़ज़ल
कर रहे थे अपनी अपनी दास्तानें सब रक़म
एक जोगी ने तो कूज़े में समुंदर लिख दिया