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ग़ज़ल
लिखा ये दावर-ए-महशर ने मेरी फ़र्द-ए-इसयाँ पर
ये वो बंदा है जिस पर नाज़ करता है करम मेरा
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
ख़त्म होगा न कभी सिलसिला-ए-अहल-ए-वफ़ा
सोच ऐ दावर-ए-मक़्तल ये फ़ज़ा क्यूँ चुप है