aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "dahaan"
उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्यादाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या
मेरा दिल-ए-गुम-गश्ता जो ढूँडा नहीं मिलतावो अपना दहन अपनी कमर देख रहे हैं
दिल-आशुफ़्तगाँ ख़ाल-ए-कुंज-ए-दहन केसुवैदा में सैर-ए-अदम देखते हैं
हमारे लब न सही वो दहान-ए-ज़ख़्म सहीवहीं पहुँचती है यारो कहीं से बात चले
है वही आरिज़-ए-लैला वही शीरीं का दहननिगह-ए-शौक़ घड़ी भर को जहाँ ठहरी है
दिल से कल महव-ए-तकल्लुम थे तो मालूम हुआकोई काकुल कोई लब कोई दहन याद नहीं
दहन पर हैं उन के गुमाँ कैसे कैसेकलाम आते हैं दरमियाँ कैसे कैसे
दहन उस का जो न मालूम हुआखुल गई हेच मदानी मेरी
मेरा क्या इक मौज-ए-हवा हूँ पर यूँ है ऐ ग़ुंचा-दहनतू ने दिल का बाग़ जो छोड़ा ग़ुंचे बे-उस्ताद हुए
आ रख दहन-ए-ज़ख़्म पे फिर उँगलियाँ अपनीदिल बाँसुरी तेरी है बजाने के लिए आ
फिर हमारा दिल-ए-गुम-गश्ता भी मिल जाएगापहले तू अपना दहन अपनी कमर पैदा कर
बर्ग-ए-गुल पर चराग़ सा क्या हैछू गया था उसे दहन मेरा
तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन कब से अज़ाब-ए-जाँ हैअब तो ये ज़हर रग ओ पय में उतर भी जाए
मेवे लगाए क्या क्या ख़ुश-ज़ाएक़ा रसीलेचखने से जिन के मुझ को शीरीं-दहाँ बनाया
मैं और उस ग़ुंचा-दहन की आरज़ूआरज़ू की सादगी थी मैं न था
न हो नाज़ुक इतना भी मश्शाता कोईदहन देख लेना कमर देख लेना
किया था उसे बोसा-बाज़ी ने पैदाकमर की तरह से जो ग़ाएब दहाँ था
बोसा नहीं न दीजिए दुश्नाम ही सहीआख़िर ज़बाँ तो रखते हो तुम गर दहाँ नहीं
नाज़िल हो कभी ज़ेहन पे आयात की सूरतआयात में ढल जा कभी जिबरील दहन तू
जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोईमुश्किल कि तुझ से राह-ए-सुख़न वा करे कोई
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