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ग़ज़ल
पल में तोला पल में माशा पल में सब दरहम बरहम
ज़र्रा-ए-ख़ाकी नज़रें मिलाए बैठे हैं सय्यारों से
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
हम उस के आँख से ओझल होने का मतलब क्या लेते हैं
वो आँख से ओझल हो तो नज़ारे दरहम-बरहम हो जाएँ
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
नज़म-ए-ज़माना दरहम-ओ-बरहम अब तो ऐसा लगता है
राहज़नों का ख़ौफ़ है कम-कम डर है पहरे-दारों से
अरमान अकबराबादी
ग़ज़ल
तुम्हारी सोच पर हैं मुनहसिर रंगीनियाँ दिल की
ये महफ़िल बेवफ़ाई से कभी दरहम नहीं होती
ख़ालिद अबरार
ग़ज़ल
साए फैल गए खेतों पर कैसा मौसम होने लगा
दिल में जो ठहराव था इक दम दरहम-बरहम होने लगा
अब्दुल हमीद
ग़ज़ल
ज़रा मेरे जुनूँ की काविश-ए-तामीर तो देखें
जो बज़्म-ए-ज़िंदगी को दरहम ओ बरहम समझते हैं