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ग़ज़ल
पारसाई शैख़-साहब की धरी रह जाएगी
दस्त-ए-साक़ी में अगर दम-भर भी साग़र रह गया
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
दस्त-ए-साक़ी में झलकता साग़र-ए-गुलफ़ाम है
जाने क़िस्मत का सिकंदर कौन तिश्ना-काम है
नश्तर क़ाइमगंजवी
ग़ज़ल
जाम-ए-कौसर दस्त-ए-साक़ी में नज़र आया मुझे
उठ गया आँखों का पर्दा अब्र-ए-रहमत देख कर
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
तौबा-ए-ज़ाहिद के दम पर आ बनी इक आन में
दस्त-ए-साक़ी में लबालब जाम-ए-सहबा देख कर