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ग़ज़ल
दबा रक्खा है इस को ज़ख़्मा-वर की तेज़-दस्ती ने
बहुत नीचे सुरों में है अभी यूरोप का वावैला
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मशरिक़ हो या कि मग़रिब हो एशिया कि यूरोप
हर ख़ित्ता-ए-ज़मीं पर पहुँची सदा-ए-उर्दू
रिज़वान बनारसी
ग़ज़ल
हमारा हिन्द भी यूरोप से ले जाएगा बाज़ी
तिलक जैसे मोहिब्बान-ए-वतन हों इंडियन पहले
विनायक दामोदर सावरकर
ग़ज़ल
ख़ुश-अदाओं के सुख़न एक ही सारे 'हक़्क़ी'
उन को यूरोप में भी दिल्ली की ज़बाँ आती है