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ग़ज़ल
जिन के फ़ुटपाठ पे घर पाँव में छाले होंगे
उन के ज़ेहनों में न मस्जिद न शिवाले होंगे
शिफ़ा कजगावन्वी
ग़ज़ल
जिन के फ़ुटपाथ पे घर पाँव में छाले होंगे
उन के ज़ेहनों में न मस्जिद न शिवाले होंगे
शिफ़ा कजगावन्वी
ग़ज़ल
शहर के तपते फ़ुटपाथों पर गाँव के मौसम साथ चलें
बूढ़े बरगद हाथ सा रख दें मेरे जलते शानों पर
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
लाख आवारा सही शहरों के फ़ुटपाथों पे हम
लाश ये किस की लिए फिरते हैं इन हाथों पे हम
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
मैं खड़ा फ़ुट-पाथ पर करता रहा रिक्शा तलाश
मेरा दुश्मन उस को मोटर में बिठा कर ले गया
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
फ़ुटपाथ पे भी सोने न दिया तिरे शहर के इज़्ज़त-दारों ने
हम कितनी दूर से आए थे इक रात बसर करने के लिए