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ग़ज़ल
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मेरे घर में है जो ग़ासिब तो निकालूँ कि नहीं
मुझ पे इल्ज़ाम-ए-जफ़ा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ
अनीस अंसारी
ग़ज़ल
इस कुम्बा-परवर दुनिया में बेकस की हिमायत कौन करे
जब ग़ासिब मुंसिफ़ बन जाएँ इंसाफ़ की ज़हमत कौन करे