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ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
ग़ैज़ का सूरज था सर पर सच को सच कहता तो कौन
रास आता किस को महशर सच को सच कहता तो कौन
एहतराम इस्लाम
ग़ज़ल
कभी वो देखते हैं अपने तेग़ ओ बाज़ू को
कभी वो ग़ैज़ से मुझ पर निगाह करते हैं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बे-वफ़ा तुम बा-वफ़ा मैं देखिए होता है क्या
ग़ैज़ में आने को तुम हो मुझ को प्यार आने को है
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
ग़ज़ब का ग़ैज़ ओ ग़ज़ब था जो हम न बिखरे थे
बिखर गए हैं तो कैसी डरी खड़ी है हवा
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
ग़ज़ल
बताओ ऐसे बंदे पर हँसी आए कि ग़ैज़ आए
दुआ माँगे मुसीबत में जो क़स्दन मुब्तला हो कर
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
बस एक जाम ने रिंदों की आबरू रख ली
वगर्ना कम न था वाइ'ज़ का शोर-ए-ग़ैज़-ओ-ग़ज़ब
अमीन राहत चुग़ताई
ग़ज़ल
जावेद जमील
ग़ज़ल
ग़ैज़ ये किस का है पानी के अज़ाबों में निहाँ
कोहसारों को निगलता है जो सूरज ही तो है
मिराक़ मिर्ज़ा
ग़ज़ल
ग़ैज़ है बज़्म के अंदर जो चले आने से
कुछ मैं बाहर भी नहीं आप के फ़रमाने से