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ग़ज़ल
न जाने कब से मैं गर्द-ए-सफ़र की क़ैद में था
कि संग-ए-मील था और रह-गुज़र की क़ैद में था
रौनक़ रज़ा
ग़ज़ल
गर्द-ए-सफ़र में आँख से ओझल कितने ही रह-गीर हुए
जितने साया-दार शजर थे राह में दामन-गीर हुए
इक़बाल अंजुम
ग़ज़ल
अगरचे मैं ख़त-ए-जादा पे इक गर्द-ए-सफ़र हूँ
खटकता हूँ मगर फिर भी कि मंज़िल की ख़बर हूँ