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ग़ज़ल
जिसे कि गर्दिश-ए-गर्दूं ने पीस डाला हो
ज़मीं से कब उसे ख़ौफ़-ए-फ़िशार रहता है
मुंशी ठाकुर प्रसाद तालिब
ग़ज़ल
जब हँसाया गर्दिश-ए-गर्दूं ने हम को शक्ल-ए-गुल
मिस्ल-ए-शबनम हैं हमेशा गिर्या ओ ज़ारी में हम
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
नहीं ये बेद-ए-मजनूँ गर्दिश-ए-गरदून-ए-गर्दां ने
बनाया है शजर क्या जानिए किस मू परेशाँ को
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
एक मंज़र पर नज़र ठहरे तो ठहरे किस तरह
हम मिज़ाज-ए-गर्दिश-ए-अय्याम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
मुझे मालूम है जो तू ने मेरे हक़ में सोचा है
कहीं हो जाए जल्द ऐ गर्दिश-ए-गर्दून-ए-दूँ वो भी
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
गर्दिश-ए-गर्दूं ख़लल-अंदाज़ मय-ख़ाना हो क्या
वक़्त रहता है यहाँ गर्दिश में पैमानों के साथ
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
गर्दिश-ए-चश्म-ए-बुताँ कि बस-कि साग़र-नोश है
गर्दिश-ए-गर्दूं को हम कहते थे गर्दिश जाम की
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
थीं बनात-उन-नाश-ए-गर्दुं दिन को पर्दे में निहाँ
शब को उन के जी में क्या आई कि उर्यां हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-तक़दीर तो नहीं
दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-अय्याम ही तो है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
वस्ल है इक शहसवार-ए-हुस्न से शाम-ओ-सहर
है इनान-ए-अबलक़-ए-गर्दूं हमारे हाथ में