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ग़ज़ल
हुए इत्तिफ़ाक़ से गर बहम तो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अक़रिबा तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
है दौर-ए-जहाँ में मुझे सब शिकवा तुझी से
क्यूँ कुछ गिला-ए-गर्दिश-ए-अय्याम करूँ मैं
आफ़ताब शाह आलम सानी
ग़ज़ल
हुस्न-ए-दिलकश के तलव्वुन पे नज़र जब पहुँची
न रहा फिर गिला-ए-गर्दिश-ए-तक़दीर मुझे
दिल शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
सच तो है अपनी ही ग़फ़लत ने है रौंदा हम को
किस लिए हम गिला-ए-गर्दिश-ए-अय्याम करें
रहमत इलाही बर्क़ आज़मी
ग़ज़ल
जिन्हें ख़बर थी कि शर्त-ए-नवागरी क्या है
वो ख़ुश-नवा गिला-ए-क़ैद-ओ-बंद क्या करते