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ग़ज़ल
हुए इत्तिफ़ाक़ से गर बहम तो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अक़रिबा तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
यही है गर ख़ुशी तो रात भर गिनते रहो तारे
'क़मर' इस चाँदनी में उन का अब आना तो क्या होगा
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त की घड़ियाँ गिनते गिनते उम्र गुज़री है
सहारा क्या सहर देती कि दिल में रात बाक़ी है
सईद अहमद सईद कड़वी
ग़ज़ल
गहराई से मोती लाने वालों का ये हाल हुआ
साहिल की आग़ोश में बैठे लहरें गिनते रहते हैं
माहिर अब्दुल हई
ग़ज़ल
'ताबिश' ये क्या पागल-पन है याद में इक हरजाई के
सारी दुनिया सोई है तुम बैठे तारे गिनते हो
ताबिश रिहान
ग़ज़ल
काली रात के सन्नाटे को मैं ने पीछे छोड़ दिया
शब-भर तारे गिनते गिनते देख सहर तक आई हूँ
इरुम ज़ेहरा
ग़ज़ल
मुअर्रिख़ गोलियों के ख़ोल गिनते जा रहे थे और
हिकायत लिख रहे थे हम यहाँ मिस्मार जिस्मों की
सबाहत उरूज
ग़ज़ल
बीच रस्ते में कहा जब हम-सफ़र ने अलविदा'अ
लौट कर हम भी चले नक़्श-ए-क़दम गिनते हुए
प्रियंवदा इल्हान
ग़ज़ल
दाग़ गिनते हुए गुज़रे हैं क़फ़स में शब-ओ-रोज़
किस तरह खुलते थे गुल-हा-ए-चमन याद नहीं