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ग़ज़ल
उठाएगी जो हम को वहशत-ए-दिल यार के दर से
गिरेंगे पाइज़ी पाँव पे अपने बेड़ियाँ हो कर
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
मैं घना पेड़ हूँ आया भी कभी जो मिरे साए को ज़वाल
इन ख़िज़ाओं से बहुत दूर गिरेंगे मिरे पत्ते जा कर
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
मोहसिन ख़ान मोहसिन
ग़ज़ल
तन्हा तन्हा दुख झेलेंगे महफ़िल महफ़िल गाएँगे
जब तक आँसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनाएँगे