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ग़ज़ल
वो ज़ालिम भी तो समझे कह रखा है हम ने याराँ को
कि गोरिस्तान से गाड़ें जुदा हम अहल-ए-हिज्राँ को
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ख़ुदा-मालूम किस की चाँद से तस्वीर मिट्टी की
जो गोरिस्ताँ में हसरत है गरेबाँ-गीर मिट्टी की
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
पस-ए-मुर्दन पए-पामाल गोरिस्ताँ में फिरते हैं
निशान-ए-तुर्बत-ए-उश्शाक़ मिल जाए कहीं हम को
अज़ीज़ुर रहमान अज़ीज़ पानी पती
ग़ज़ल
ये गोरिस्ताँ नहीं आराम-गाह-ए-अहल-ए-दुनिया है
यहाँ हारे थके आ कर ज़रा आराम लेते हैं
बिसमिल देहलवी
ग़ज़ल
यही काँटे तो कुछ ख़ुद्दार हैं सेहन-ए-गुलिस्ताँ में
कि शबनम के लिए दामन तो फैलाया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
हमीं से रंग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रंग-ए-बहार
हमीं को नज़्म-ए-गुलिस्ताँ पे इख़्तियार नहीं
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
जाने किस रंग से आई है गुलिस्ताँ में बहार
कोई नग़्मा ही नहीं शोर-ए-सलासिल के सिवा
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
आरज़ूओं का शबाब और मर्ग-ए-हसरत हाए हाए
जब बहार आए गुलिस्ताँ में तो मुरझाता हूँ मैं