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ग़ज़ल
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल मेरा करे वो चारागर कैसे
जो दिल गुर्दे को समझे और जिगर को फेफड़ा समझे
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया
न कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कहीं और बाँट दे शोहरतें कहीं और बख़्श दे इज़्ज़तें
मिरे पास है मिरा आईना मैं कभी न गर्द-ओ-ग़ुबार लूँ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी
तिरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर सँभल न जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
क्या दबदबा-ए-नादिर क्या शौकत-ए-तैमूरी
हो जाते हैं सब दफ़्तर ग़र्क़-ए-मय-ए-नाब आख़िर
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ज़रा सी गर्द-ए-हवस दिल पे लाज़मी है 'फ़राज़'
वो इश्क़ क्या है जो दामन को पाक चाहता है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
जो क़ीमत जानते हैं गर्द-ए-राह-ए-ज़िंदगानी की
वो ठुकराई हुई दुनिया को ठुकराया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
क़दम रखता है जब रस्तों पे यार आहिस्ता आहिस्ता
तो छट जाता है सब गर्द-ओ-ग़ुबार आहिस्ता आहिस्ता