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ग़ज़ल
ये गुस्ताख़ी ये छेड़ अच्छी नहीं है ऐ दिल-ए-नादाँ
अभी फिर रूठ जाएँगे अभी तो मन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
गुस्ताख़ी-ए-विसाल है मश्शाता-ए-नियाज़
या'नी दुआ ब-जुज़ ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-दुता न माँग
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वक़्त-ए-इमदाद है ऐ हिम्मत-ए-गुस्ताख़ी-ए-शौक़
शौक़-अंगेज़ हैं उन के लब-ए-ख़ंदाँ क्या क्या
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
रमज़ीं हैं मोहब्बत की गुस्ताख़ी ओ बेबाकी
हर शौक़ नहीं गुस्ताख़ हर जज़्ब नहीं बेबाक
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हवस गुस्ताख़ी-ए-आईना तकलीफ़-ए-नज़र-बाज़ी
ब-जेब-ए-आरज़ू पिन्हाँ है हासिल दिलरुबाई का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ग़ुंचा हँसता है तिरे आगे जो गुस्ताख़ी से
चटख़ना मुँह पे वहीं बाद-ए-सहर देती है