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ग़ज़ल
ज़ौक़-ए-वारफ़्ता की असनाम-गरी मिट न सकी
हाइल-ए-राह वही संग-ए-गिराँ है कि जो था
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
किस का चमकता चेहरा लाएँ किस सूरज से माँगें धूप
घोर अँधेरा छा जाता है ख़ल्वत-ए-दिल में शाम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हिसाब-ए-दर्द तो यूँ सब मिरी निगाह में है
जो मुझ पे हो न सकीं वो नवाज़िशें लिखना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
ज़िंदगी भर मैं रहा हूँ रहरव-ए-राह-ए-वफ़ा
इन वफ़ाओं की मगर मैं ने सज़ा पाई बहुत