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ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मजाज़ ख़ुद ही हक़ीक़त का रूप ढालेगा
ये शर्त है कि हक़-ए-बंदगी अदा तो करो
जगजीवन लाल आस्थाना सहर
ग़ज़ल
हक़ तो ये है कि मुझे अपने ही दिल ने लूटा
कुछ तिरा शिकवा-ए-बेदाद करूँ या न करूँ
सुल्तानुल हक़ शहीदी काश्मीरी
ग़ज़ल
हम राह-रव-ए-मंज़िल दुश्वार रहे हैं
हर तरह मुसीबत में गिरफ़्तार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
इल्म-ओ-हुनर है मुल्क को दरकार आज-कल
हम ख़ुद भले-बुरे के हैं मुख़्तार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है
ख़िरद का पास भी ख़्वाबों का कारोबार भी है