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ग़ज़ल
हैं ख़ुदावंदान-ए-दुनिया हम तही-दस्तों से हेच
दिल को हसरत थी तो हम जैसों से ख़िलअत माँगता
पीरज़ादा क़ासीम
ग़ज़ल
हेच मिरी निगाह में दौलत-ए-काएनात है
क्यूँकि अज़ल के दिन से हूँ बंदा-ए-बे-नियाज़ मैं
शहज़ादी कुलसूम
ग़ज़ल
हम मस्त-ए-इश्क़ वाइ'ज़ बे-हेच भी नहीं हैं
ग़ाफ़िल जो बे-ख़बर हैं कुछ उन को भी ख़बर है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ये जोड़ा खोलना भी हेच से ख़ाली नहीं उन का
उलझ जाता है दिल जब बाल शानों पर बिखरते हैं