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ग़ज़ल
बहर-ए-इबलीस में तूफ़ान हैं पिन्हाँ कितने
कहीं हिज़्याँ कहीं सरसाम अभी बाक़ी है
मोहम्मद तारिक़ ग़ाज़ी
ग़ज़ल
बच जाइयों कम्बख़्त मिरी बख़्त-ए-सियह से
याँ आइयो तो ऐ शब-ए-हिज्रान समझ कर
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
याँ मकीनों के दिलों से हैं उमंगें ग़ाएब
और दिमाग़ों में हैं हिज़्यान ये घर कैसा है
सय्यद अहमद सहर
ग़ज़ल
अलम-नशरह हुआ सिर्र-ए-ख़फ़ी हिज़्यान-ए-मस्ती में
असर था 'ज़ार' ये शुर्ब-ए-शराब-ए-हाल-ए-विज्दाँ का