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ग़ज़ल
तुझ पर फ़िदा हैं सारे हुस्न-ओ-जमाल वाले
क्या साफ़ गाल वाले क्या ख़त्त-ओ-ख़ाल वाले
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
करते हैं चैन बैठे हुस्न-ओ-जमाल वाले
फिरते हैं मारे मारे क्या क्या कमाल वाले
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
ग़ज़ल
अनीस शाह अनीस
ग़ज़ल
मताअ'-ए-हुस्न-ओ-जमाल-ओ-कमाल क्या क्या कुछ
चुरा के ले गए ये माह-ओ-साल क्या क्या कुछ
सय्यद सलमान गीलानी
ग़ज़ल
ख़ुदा ही जाने मैं आई हूँ कैसे गुलशन में
यहाँ तो ख़ार भी हुस्न-ओ-जमाल रखता है
वाला जमाल एल-एसिली
ग़ज़ल
जमाल-ए-हुस्न-ए-दरख़्शाँ हरीम-ए-जाँ में नहीं
वो सज्दे ढूँढ रहा हूँ जो आस्ताँ में नहीं