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ग़ज़ल
अक़ाएद वहम हैं मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी
अज़ल से ज़ेहन-ए-इंसाँ बस्ता-ए-औहाम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
ख़ुश्क लबों पर प्यास सजाए बहर-ए-आशाम नहीं हैं हम
हम जैसों को तिश्ना-लबी में एक ही दरिया काफ़ी है
असलम अंसारी
ग़ज़ल
क्यूँ भला इबलीस को इल्ज़ाम देते हो फ़क़त
तुम को ख़ैर-ओ-शर का भी इल्हाम होना चाहिए
हुमैरा गुल तिश्ना
ग़ज़ल
मोहब्बत इर्तिबात-ए-क़ल्ब से मशरूत होती है
यक़ीन-ओ-रब्त के इबहाम हो जाने से डरता हूँ
अली मुज़म्मिल
ग़ज़ल
अब तक उस के दम से अपनी ख़ुश-फ़हमी तो क़ाएम है
अच्छा है जो बात में इस की थोड़ा सा इबहाम रहे
शबनम शकील
ग़ज़ल
खोल कर कीजिए तशरीह-ए-सर-ए-मिस्रा-ए-ज़ुल्फ़
इस नविश्ते में कुछ इबहाम अभी बाक़ी हैं