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ग़ज़ल
साक़ी हैं रोज़-ए-नौ-बहार यक दो सह चार पंज ओ शश
दे मुझे जाम-ए-ख़ुश-गवार यक दो सह चार पंज ओ शश
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
शाद लखनवी
ग़ज़ल
रहे नौ-रोज़ इशरत-आफ़रीं जोश-ए-बहार-अफ़्ज़ा
गुल-अफ़शाँ है करम तेरा चमन में दहर के हर जा
मह लक़ा चंदा
ग़ज़ल
सुब्ह-ए-रोज़-ए-आदम-ए-नौ है धूम मची है घर घर में
साथियो उट्ठो सुबूही से छलकाएँ भर के अयाग़ों को
सफ़दर मीर
ग़ज़ल
ईद है और साक़ी-ए-नौ-ख़ेज़ मयख़ाने में है
आज पीने का मज़ा पी कर बहक जाने में है
मुज़फ़्फ़र शिकोह
ग़ज़ल
नौ रोज़ है और साक़ी-ए-कौसर का है अब दौर
ईज़ा दे मुझे गर्दिश-ए-दौरान समझ कर