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ग़ज़ल
गया हूँ भूल सब कुछ दुख़्तर-ए-रज़ जैसे हाथ आई
जिगर है जान है ईमान है ईक़ान है क्या है
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
आँखों को मिरी पढ़ कर साक़ी ने कहा हँस कर
ईक़ान ज़रा मुश्किल मय-ख़्वार की बातें हैं
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल
क्या बढ़ के नहीं चूमे हैं दार-ओ-रसन हम ने
फिर भी हमें इज़्ज़त का ईक़ान नहीं मिलता
ग़ुबार किरतपुरी
ग़ज़ल
हर्ज़ा फिरने से तिरे गोशा-नशीनी बेहतर
वहम-ओ-शक और गुमाँ छोड़ के ईक़ान में आ