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ग़ज़ल
तुम्हारे हुस्न से हम हर बशर को देखते हैं
तुम्हारे हुस्न से हम ईश्वर को देखते हैं
सफ़वत अली सफ़वत
ग़ज़ल
सीमा विजयवर्गीय
ग़ज़ल
हाँ हाँ तिरी सूरत हसीं लेकिन तू ऐसा भी नहीं
इक शख़्स के अशआ'र से शोहरा हुआ क्या क्या तिरा