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ग़ज़ल
शाद लखनवी
ग़ज़ल
अश्क-उफ़्तादा नज़र आते हैं सारे दरिया
सैल-ए-गिर्या ने ये नज़रों से उतारे दरिया
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
मैं ख़ुद साहिल पे बैठूँगा किनार-ए-आफ़ियत में
इजारे पर सफ़ीनों को रवाँ करता रहूँगा
मिद्हत-उल-अख़्तर
ग़ज़ल
दम-ए-तौफ़ किरमक-ए-शम्अ ने ये कहा कि वो असर-ए-कुहन
न तिरी हिकायत-ए-सोज़ में न मिरी हदीस-ए-गुदाज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-ईजाद-ए-नाज़ अफ़सून-ए-अर्ज़-ज़ौक़-ए-क़त्ल
ना'ल आतिश में है तेग़-ए-यार से नख़चीर का