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ग़ज़ल
तू गया घर में मुझे छोड़ के तन्हा जब से
सर पटकते हैं सितमगर दर-ओ-दीवार से हम
सिपाह दार ख़ान बेगुन
ग़ज़ल
है शब-ए-वस्ल मय-ए-वस्ल पियो तुम बे-ख़ौफ़
आँख क्यों आप की है जानिब-ए-दर कुछ भी नहीं