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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
जरीदा में रह-ए-पुर-ख़ून-ए-इश्क़ से गुज़रा
जरस से क़ाफ़िले में बहस-ए-नाला क्या करता
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
जो राज़-ए-दिल था वो ख़ल्वत में सब कहा हम ने
कोई भी साथ नहीं था जरीदा आया था
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
ये क़नाअ'त है इताअत है कि चाहत है 'फ़राज़'
हम तो राज़ी हैं वो जिस हाल में जैसा रक्खे
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
शौक़ से राह-ए-मोहब्बत की मुसीबत झेल ले
इक ख़ुशी का राज़ पिन्हाँ जादा-ए-मंज़िल में है