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ग़ज़ल
कुछ लिहाज़-ए-जज़्ब-ए-उल्फ़त कुछ ख़याल-ए-ज़ब्त-ए-शौक़
किस तरह हम उन से अपने ग़म का अफ़्साना कहें
कँवल एम ए
ग़ज़ल
इक जज़्बा-ए-बे-नाम लिए फिरता है दिल को
इस ताइर-ए-पर-बस्ता की परवाज़ तो देखो
बेगम मुम्ताज़ मिर्ज़ा
ग़ज़ल
जो आए दिल में सब जज़्ब-ए-निगाह-ए-ना-तवाँ कर लें
हम अर्ज़-ए-शौक़ से पहले न उन को राज़-दाँ कर लें
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
हमारा मक़सद-ए-अव्वल है जज़्ब-ए-शौक़-ओ-सर-मस्ती
यही वो ज़िंदगी है जिस को हम कामिल समझते हैं
कलीम अहमदाबादी
ग़ज़ल
इश्क़ ने अता कर के जज़्ब-ओ-शौक़-ए-बे-पायाँ
मुश्त-ए-ख़ाक को बख़्शी आसमाँ-पनाही भी
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
ग़ज़ल
ये उज़्र-ए-इम्तिहान-ए-जज़्ब-ए-दिल कैसा निकल आया
मैं इल्ज़ाम उस को देता था क़ुसूर अपना निकल आया
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
काम क्या जज़्ब-ए-तमन्ना-ए-ज़ुलेख़ा आया
कारवाँ भी चह-ए-यूसुफ़ ही पे होता आया