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ग़ज़ल
दुनिया के मसाइब झेलने को मालिक ने बनाया है जीवन
आराम भला फिर काहे का फिर काहे ये सोना है
आकिफ़ ग़नी
ग़ज़ल
इसी दिल को भरी दुनिया के झगड़े झेलने ठहरे
यही दिल जिस को दुनिया-दार भी करते नहीं बनता
महबूब ख़िज़ां
ग़ज़ल
अगर तक़दीर में होता तो इक दिन पार भी लगता
ये दरिया झेलने को यूँ तो ऐ दिल ख़ूब झेला था
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
किसी के वास्ते क्या क्या हमें दुख झेलने होंगे
शबों को जागना होगा कड़े दिन काटने होंगे
इम्दाद हमदानी
ग़ज़ल
शौक़ से राह-ए-मोहब्बत की मुसीबत झेल ले
इक ख़ुशी का राज़ पिन्हाँ जादा-ए-मंज़िल में है