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ग़ज़ल
कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़
कि ला-मकाँ ही की चौखट है आस्ताना-ए-इश्क़
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
सर्द न कर मज़ाक़-ए-इश्क़ बे-ख़ुदी-ए-नमाज़ में
आँख को दूरबीं बना जल्वा-गह-ए-मजाज़ में
तालिब बाग़पती
ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
'अश्क' अपने सीना-ए-पुर-ख़ूँ में सैल-ए-अश्क भी
रोक रखता हूँ जिगर के ख़ून की तहलील तक
अश्क अमृतसरी
ग़ज़ल
दो बोल दिल के हैं जो हर इक दिल को छू सकें
ऐ 'अश्क' वर्ना शेर हैं क्या शाइरी है क्या
इब्राहीम अश्क
ग़ज़ल
सत्ह-ए-दरिया पर सुकूँ सा है मगर ऐ सत्ह-बीं
क़अ'र-ओ-दरिया में वही मौजें हैं तूफ़ानी हनूज़