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ग़ज़ल
क़दम मय-ख़ाना में रखना भी कार-ए-पुख़्ता-काराँ है
जो पैमाना उठाते हैं वो थर्राया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
बनाया इश्क़ ने दरिया-ए-ना-पैदा-कराँ मुझ को
ये मेरी ख़ुद-निगह-दारी मिरा साहिल न बन जाए
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
उस को भूले बरसों गुज़रे लेकिन आज न जाने क्यूँ
आँगन में हँसते बच्चों को बे-कारन धमकाया है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
जिन के कारन आज हमारे हाल पे दुनिया हँसती है
कितने ज़ालिम चेहरे जाने पहचाने याद आते हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
कारवाँ थक कर फ़ज़ा के पेच-ओ-ख़म में रह गया
मेहर ओ माह ओ मुश्तरी को हम-इनाँ समझा था मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मेरी चुप रहने की आदत जिस कारन बद-नाम हुई
अब वो हिकायत आम हुई है सुनता जा शरमाता जा