aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "kamaan"
सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ मेंपलंग ज़ाविए उस की कमर के देखते हैं
चाल जैसे कड़ी कमान का तीरदिल में ऐसे के जा करे कोई
ख़ामुशी कह रही है कान में क्याआ रहा है मिरे गुमान में क्या
अबरू से है क्या उस निगह-ए-नाज़ को पैवंदहै तीर मुक़र्रर मगर इस की है कमाँ और
अब आया तीर चलाने का फ़न तो क्या आयाहमारे हाथ में ख़ाली कमान बाक़ी है
अब इतनी सादगी लाएँ कहाँ सेज़मीं की ख़ैर माँगें आसमाँ से
इक परिंदा अभी उड़ान में हैतीर हर शख़्स की कमान में है
वो नाम हूँ कि जिस पे नदामत भी अब नहींवो काम हैं कि अपनी जुदाई कमाऊँ मैं
मैं ने तुझे मुआ'फ़ किया जा कहीं भी जामैं बुज़दिलों पे अपनी कमाँ तानती नहीं
किसी दुश्मन का कोई तीर न पहुँचा मुझ तकदेखना अब के मिरा दोस्त कमाँ खेंचता है
हाए वो नावक-ए-गुज़ारिश-ए-रंगजिस की जुम्बिश कमान में गुज़री
फिर हमारा दिल-ए-गुम-गश्ता भी मिल जाएगापहले तू अपना दहन अपनी कमर पैदा कर
हवा न जाने कहाँ ले गई वो तीर कि जोनिशाने पर भी न था और कमान में भी न था
तराश कर मिरे बाज़ू उड़ान छोड़ गयाहवा के पास बरहना कमान छोड़ गया
जबीं चराग़ मुक़द्दर कुशादा धूप सहरग़ुरूर क़हर त'अज्जुब कमाल नूर भरी
ने तीर कमाँ में है न सय्याद कमीं मेंगोशे में क़फ़स के मुझे आराम बहुत है
किसी के हाथ से निकला हुआ वो तीर हूँ जोहदफ़ को छू न सका और कमान से भी गया
जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हमबेदार हो गए किसी ख़्वाब-ए-गिराँ से हम
तेग़ की तरह चलो छोड़ के आग़ोश-ए-नियामतीर की तरह से आग़ोश-ए-कमाँ तक आओ
हदफ़ भी मुझ को बनाना है और मेरे हरीफ़मुझी से तीर मुझी से कमान माँगते हैं
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