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ग़ज़ल
मैं बहुत कमज़ोर था इस मुल्क में हिजरत के बा'द
पर मुझे इस मुल्क में कमज़ोर-तर उस ने किया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
तेग़ बे-आब है ने बाज़ु-ए-क़ातिल कमज़ोर
कुछ गिराँ-जानी है कुछ मौत ने फ़ुर्सत दी है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ तो सह ली लेकिन मौसम-ए-गुल में टूट गिरी
बोझ फलों का सह नहीं पाई शाख़ कि थी कमज़ोर बहुत