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ग़ज़ल
शहर-ए-हवस के सौदाई ख़ुद जिन की रूहें नंगी हैं
मेरे तन की उर्यानी पर आवाज़े क्यूँ कसते हैं
प्रेम वारबर्टनी
ग़ज़ल
तेग़-ए-अबरू कूँ निपट कसते हो पन हैराँ हूँ मैं
कौन से बीमार पर ये आब दम होने लगा
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
आमिर सुहैल
ग़ज़ल
ग़ुंचे मिज़ाज-ए-'इश्क़ पे कसते हैं फब्तियाँ
गुल ही गवाह होंगे शहादत हज़ार तक
बिशन दयाल शाद देहलवी
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
करते हैं जिस पे ता'न कोई जुर्म तो नहीं
शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ उल्फ़त-ए-नाकाम ही तो है