आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "khab"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "khab"
ग़ज़ल
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तारीकियों में देखता हूँ रोज़ ख़ून-ए-ख़्वाब
शब को सहारा देता शिकस्ता सुतून-ए-ख़्वाब
क़ासिम रज़ा मुस्तफ़ाई
ग़ज़ल
न हम महव-ए-ख़याल अबरू-ए-ख़म-दार सोते हैं
सिपाही हैं ज़ि-बस बाँधे हुए तलवार सोते हैं