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ग़ज़ल
वो ज़हर-ए-ख़ंद जो घोले हैं चश्म ओ लब ने तिरे
तुझे ख़ुशी हो तो पूछें कि ज़ेर-ए-लब क्या है
सिद्दीक़ मुजीबी
ग़ज़ल
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कंट्रोल उस के लब-ए-शीरीं पे गर यूँ ही रहा
खांड का शर्बत नसीब-ए-दुश्मनाँ हो जाएगा
हुसैन मीर काश्मीरी
ग़ज़ल
शेफ़्ता का ख़ंद-ए-नीमा आस्तान-ए-इश्क़ पर
जब खुलाए दिल ब-दस्त-ए-दिल खुला तन-मन खुला
अबान आसिफ़ कचकर
ग़ज़ल
अब है लहजे में नुकीला-पन लबों पर ज़हर-ए-ख़ंद
अब यक़ीं आया कि 'नाज़िश' राज़-दार-ए-नग़मा है
नाज़िश प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
है पियाला शीर का लबरेज़ मह के हाथ में
अब शकर-ख़ंदी से उस में डाल दे तू क़ंद और