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ग़ज़ल
वो अब्र आया वो रंग बरसे वो कैफ़ जागा वो जाम खनके
चमन में ये कौन आ गया है तमाम मौसम बदल रहा है
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
साग़र खनके मयख़ाने में रात ढली अब लुत्फ़ आया है
ऐसे में ऐ साक़ी-ए-महफ़िल शैख़ का आना खुल जाएगा
सोज़ सिकन्दरपुरी
ग़ज़ल
फ़ज़ा-ए-गुल्सिताँ से दिल अगर बेगाना हो जाए
हर इक गुल ख़ार सा खनके चमन वीराना हो जाए
मुख़्तार आशिक़ी जौनपुरी
ग़ज़ल
चश्म-ए-तमन्ना के कासे में खनके इस्म-ए-दिल-आवेज़
दीद के सिक्के नज़्र गुज़ारो हम भी हैं नादार बहुत
अमीर हम्ज़ा साक़िब
ग़ज़ल
शैख़ जो है मस्जिद में नंगा रात को था मय-ख़ाने में
जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ'म किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे