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ग़ज़ल
आज़ादी की खाट पे सोई खादी की उजली नींदें
गाँव की दब गई सिसकियाँ दिल्ली के ख़र्राटे में
कैलाश सेंगर
ग़ज़ल
मुझ से लाग़र तिरी आँखों में खटकते तो रहे
तुझ से नाज़ुक मिरी नज़रों में समाते भी नहीं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही
न तो तू रहा न तो मैं रहा जो रही सो बे-ख़बरी रही
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से
मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँख में पिछली रात की चाँदनी
न बुझे ख़राबे की रौशनी कभी बे-चराग़ ये घर न हो