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ग़ज़ल
कम नहीं मिल्क-ए-सुलेमाँ से विसाल-ए-साक़ी
गर्दिश-ए-जाम मुझे हल्क़ा-ए-ख़ातम हो जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
ख़ातम-ए-दस्त-ए-सुलैमाँ से हूँ 'क़ाएम' मैं अज़ीज़
सख़्त पछताए वो जो हाथ से खोवे मुझ को
क़ाएम चाँदपुरी
ग़ज़ल
मैं कि ख़ातम भी हूँ ख़ुद अपनी तबीअ'त का 'ज़िया'
क़त हुआ सिलसिला-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ मेरे बा'द
ज़िया फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
बिठाया ख़ातम-ए-इज़्ज़त पे तेरे नाम-ए-नामी ने
वगर्ना है ये ज़ाहिर था हक़ीक़त में नगीं पत्थर
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
उस की तहरीर नहीं सिल्क-ए-गुहर है 'जावेद'
उस का हर क़ौल कि ख़ातम का नगीं लगता है
सुलैमान अतहर जावेद
ग़ज़ल
ता-दम-ए-ज़ीस्त रहा यार-ए-परी-रू तस्ख़ीर
हर्फ़-ए-ख़ातम हुए हम नक़्श-ए-सुलैमाँ हो कर