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ग़ज़ल
उफ़ तिरे हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ की पुर-ज़ोर कशिश
नूर सब खेंच लिया चश्म-ए-तमाशाई का
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
वो पिछली मोहब्बत याद आई वो तेरी शरारत याद आई
वो खेंच के चादर हाथों से सोने से जगाना याद आया
पैकर जाफरी
ग़ज़ल
शाह नसीर
ग़ज़ल
मैं ख़ुद को खेंच लाऊँगी अँधेरी रात में इक दिन
इन्ही तारीक रस्तों पर मैं अपना डर निकालूँगी