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ग़ज़ल
सैंकड़ों तरह की चीज़ें थीं डिनर में लेकिन
ये तो फ़रमाएँ वहाँ क़ीमा-ए-ख़िंज़ीर भी था
हाशिम अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ख़िज़्र-सुल्ताँ को रखे ख़ालिक़-ए-अकबर सरसब्ज़
शाह के बाग़ में ये ताज़ा निहाल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हो उम्र-ए-ख़िज़्र भी तो हो मालूम वक़्त-ए-मर्ग
हम क्या रहे यहाँ अभी आए अभी चले
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
वो अच्छा था जो बेड़ा मौज के रहम ओ करम पर था
ख़िज़र आए तो कश्ती डूबती मालूम होती है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
बे-सर्फ़ा ही गुज़रती है हो गरचे उम्र-ए-ख़िज़्र
हज़रत भी कल कहेंगे कि हम क्या किया किए
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
होवे इक क़तरा जो ज़हराब-ए-मोहब्बत का नसीब
ख़िज़्र फिर तो चश्मा-ए-आब-ए-बक़ा क्या चीज़ है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
वो कौन था जो ले के मुझे घर से चल पड़ा
सूरत ख़िज़र की थी न वो चेहरा ख़िज़र का था