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ग़ज़ल
शुऊर-ओ-फ़िक्र की तज्दीद का गुमाँ तो हुआ
चलो कि फ़न का उफ़ुक़ किश्त-ए-ज़ाफ़राँ तो हुआ
फ़रहत क़ादरी
ग़ज़ल
हँसे कोई न बिजली के सिवा इस दार-ए-मातम में
अगर रह जाए सारा खेत किश्त-ए-ज़ाफ़राँ हो कर
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
बाग़-ओ-बहार है वो मैं किश्त-ए-ज़ाफ़राँ हूँ
जो लुत्फ़ इक इधर है तो याँ भी इक समाँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
गराँ ज़मीन-ए-किश्त-ए-ग़म-ए-जिगर को नक़्द की अदा
मसर्रतों का वहम था उधार कर लिया गया
फ़रहत नादिर रिज़्वी
ग़ज़ल
क़दम-ए-ख़ुश-बदनाँ शो'बदा-गर है कि नहीं
ये ज़मीं-लाला-रुख़-ओ-किश्त-ए-गुहर है कि नहीं
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
रुख़-ए-नुमू को शिकायत फ़क़त ख़िज़ाँ से नहीं
बहार में भी हुई किश्त-ए-जिस्म-ओ-जाँ बर्बाद