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ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
नया कम-ख़्वाब का लहँगा झमकते ताश की अंगिया
कुचें तस्वीर सी जिन पे लगा गोटा कनारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
अनार-ए-ख़ुल्द को तू रख के हैं पसंद हमें
कुचें वो यार की रश्क-ए-अनार ऐ वाइज़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले