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ग़ज़ल
साया-ए-चश्म में हैराँ रुख़-ए-रौशन का जमाल
सुर्ख़ी-ए-लब में परेशाँ तिरी आवाज़ का रंग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हम भी लै को तेज़ करेंगे बूँदों की बौछार के साथ
पहला सावन झूलने वालो तुम भी पेंग बढ़ा देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
सफ़्हा सफ़्हा एक किताब-ए-हुस्न सी खुलती जाएगी
और उसी की लय में फिर मैं तुम को अज़बर कर लूँगा