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ग़ज़ल
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
इक तिश्ना-लब ने बढ़ के जो साग़र उठा लिया
हर बुल-हवस ने मय-कदा सर पर उठा लिया
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
अभी देखी कहाँ हैं आप ने सब ख़ूबियाँ मेरी
निगाहें ढूँढती हैं आप की बस ख़ामियाँ मेरी