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ग़ज़ल
सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
तग़य्युर आब-ए-बर-जा-मांदा का पाता है रंग आख़िर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का साया जो मिल जाए तो रुक जाऊँ
थका-माँदा हुआ हूँ धूप ग़म की चिलचिलाती है
ख़्वाजा ज़मीर
ग़ज़ल
क़दम लेती है बढ़ कर ओस में भीगी हुई धरती
ये पस-माँदा मुसाफ़िर शहर के मालूम होते हैं
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
ऐ जरस हरज़ा-दिरा हो न तू इतना चुप रह
पहुँचे पस-माँदा ब-मंज़िल वो सदा और ही है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
उड़ाई ख़ाक जिस सहरा में तेरे वास्ते मैं ने
थका-माँदा मिला इन मंज़िलों में आसमाँ मुझ को
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
दम तो लेने दो नकीरैन थका-माँदा हूँ
रुख़ पे देखो तो मिरे गर्द-ए-सफ़र है कि नहीं