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ग़ज़ल
इब्तिदा का इंतिहा से राब्ता बाँधे हुए
घर से निकला हूँ सफ़र का मुद्दआ' बाँधे हुए
माजिद अली काविश
ग़ज़ल
उस की तस्वीर बनाता रहा जदवल की बजाए
और इस बार तो मैडम ने सज़ा दी भी नहीं
सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
इस चश्म-ए-अश्क-बार के क्यूँकर हो सामने
रोने का माद्दा ही नहीं है सहाब में
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ग़ज़ल
उन्स है माद्दा-ए-अस्ल-ओ-सरिश्त-ए-इंसाँ
उल्फ़त इंसान से रक्खेगा जो इंसाँ होगा
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
वो बिगड़ना वस्ल की रात का वो न मानना किसी बात का
वो नहीं नहीं की हर आन अदा तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
क्या क्या फ़ित्ने सर पर उस के लाता है माशूक़ अपना
जिस बे-दिल बे-ताब-ओ-तवाँ को इश्क़ का मारा जाने है